गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

मुखौटे ...

हर दिन,
हर रिश्ता हमें 
सौ प्रतिशत अटेन्शन 
मांगता है 
अनंत रिश्तों से
जुड़े हुए हम 
जब ऐसा नहीं 
कर पाते तब 
एक कुशल 
अभिनेता की तरह 
अभिनय करने लगते है 
अनंत मुखौटे 
ओढ़ कर दिन भर,
और अभिनय 
करते-करते जब 
थक जाते है 
सोने से पहले
रात की खूंटी पर 
टांग देते है सारे 
मुखौटे उतार कर 
तब पहचान ही 
नहीं पाते कि 
हमारा असली 
चेहरा कौनसा है   … ??

10 टिप्‍पणियां:

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  2. आपकी लिखी रचना शनिवार 19 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. जी 200 % सहमत कभी कभी दिन और रात के मुखौटे आपस में बदल जाते हैं :)

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  4. महान फ़िल्मकार सत्यजीत राय की एक कृति है 'अभिनेत्री'... यह इन्हीं भावों को एक नारी के पक्ष से दर्शाती है कि उसका व्यवहार कितनी सहजता से दिन भर में बदलता रहता है और वह एक अभिनेत्री बनकर रह जाती है!! महान कलाकार स्मिता पाटील ने उसमें अभिनय किया था.
    मुझसे भी एकबार इण्टरव्यू में किसी ने कार्बन को लेकर मज़ाक किया था कि यह कारबनिक रसायन में भी है और अकार्बनैक रसायन में भी.. तब मैंने कहा था कि यह बिल्कुल आप की तरह है.. कॉलेज में प्रोफेसर, पत्नी के लिये पति, संतान के लिये पिता और हमारे लिये इस बोर्ड के अध्यक्ष... मुखौटा ही तो है. लेकिन मुखौटों ने आज इस कदर चेहरे को दबोच लिया है कि इंसान का वास्तविक चेहरा अपना अस्तित्व खो देता है..
    कुछ लोग इसी को अपना चेहरा बना लेते हैं और कुछ मेरे जैसे अल्पबुद्धि व्यक्ति कहते हैं:

    देख लो नोच के नाख़ून से मेरा चेहरा,
    दूसरा चेहरा लगाया है ना चिपकाया है!!

    बहुत ही सूक्ष्म अवलोकन और सरस अभिव्यक्ति!!

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    1. सलिल जी,
      रचना को जब सकारात्मक प्रशंसा का पुरस्कार मिलता है न तो वह रचना मुक्त हो जाती है अपनी रचना धर्मिता से, आपकी यह टिप्पणी मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं
      बहुत बहुत आभार आपका !

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  5. attention na mile to kai jagah/jano ko tension ho jaati hai...

    रात की खूंटी पर
    टांग देते है सारे
    मुखौटे उतार कर
    तब पहचान ही
    नहीं पाते कि
    हमारा असली
    चेहरा कौनसा है … ??

    bahut hi khoob sir :-)
    Kabhi likha tha "Ek chehre mein kai chehre chhupaate hai log...."

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  6. जीवन भर चेहरे दो रखते
    समय देख कर रंग बदलते
    सड़ा हुआ सा जीवन लेकर
    औरों पर ये, छींटे कसते !
    रोज दिखायी देते ऐसे रावण मन,रामायण पढ़ते,
    श्वेतवसन शुक्राचार्यों को , मंदिर में बैठे देखा है !

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  7. गहन आत्मचिंतन से ही उपजती हैं ऐसी रचनाये. बहुत अच्छा लगा.

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  8. सच कह है ... कई बार तो एक एक दिन में इतने मुखौटे लगते हैं हम कि भूल जाते हैं हम कौन हैं ... आत्मचिंतन करती गहरी रचना ..

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